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गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

चाँद और तुम

चाँद का तिरछापन

खटकता नहीं है अब

बेध जाता है कही गहरा ...

...........कैसे

स्थिर नहीं रख पाता

चाँद अपनी गोलाई ...?

और

तुम चुपचाप

रख देती अपना हृदय

उस ताक पर

जहां कभी

चिराग जला करते थे |

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

पता

ऐसा क्या था ?
तुम्हारी आवाज में ...
वह खींचता चला गया
हवा में फेंका नहीं था ...
तुमने अपने घर का पता....
वह सबसे पूंछता चला गया
....हाँ
तुम अब भी कहोगी
वह पागल था