चाँद का तिरछापन
खटकता नहीं है अब
बेध जाता है कही गहरा ...
...........कैसे
स्थिर नहीं रख पाता
चाँद अपनी गोलाई ...?
और
तुम चुपचाप
रख देती अपना हृदय
उस ताक पर
जहां कभी
चिराग जला करते थे |
दिल्ली हादसों का नही इतिहास का शहर हैं...और यहाँ इतिहास किसी सल्तनत का नही शहर का हैं और शहर में कैद मुहब्बतों का है. हां, अपने पीछे छुट गए शहर के झरोंखों में झांकता हूँ तो तुम यादों की पोटली बन जाती हैं जिसे तुमने 'क्यूं' और 'क्या' के गिरह में बाँध रखा है.
चाँद का तिरछापन
खटकता नहीं है अब
बेध जाता है कही गहरा ...
...........कैसे
स्थिर नहीं रख पाता
चाँद अपनी गोलाई ...?
और
तुम चुपचाप
रख देती अपना हृदय
उस ताक पर
जहां कभी
चिराग जला करते थे |