हमसब राजा थे
अपने-अपने हिस्से के
अपने दिनों में
जब हर तरफ बिखरा रहता था उत्साह
और अंतिम थकान के बाद भी
बचा रह जाता था जोश जिद की तरह
तब खिड़कियाँ हुआ करते थे हमसब
और हमारी बातें रौशनदान
दिल्ली हादसों का नही इतिहास का शहर हैं...और यहाँ इतिहास किसी सल्तनत का नही शहर का हैं और शहर में कैद मुहब्बतों का है. हां, अपने पीछे छुट गए शहर के झरोंखों में झांकता हूँ तो तुम यादों की पोटली बन जाती हैं जिसे तुमने 'क्यूं' और 'क्या' के गिरह में बाँध रखा है.
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