दिल्ली के ऊपर जिसने भी राज किया वह इतिहास का हिस्सा होते गए। भाजपा के विजयरथ को आश्चर्यजनक ढंग से अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में रोक दिया था। खैर उसके बाद यमुना का पानी और काला हुआ और दिल्ली लोकपाल के बगैर ही अपना जीवन गुआजरती रही। थोड़े बहुत उथल-पुथल के बाद सब कुछ पटरी पर चल रहा था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनाने की रिकार्ड तोड़ने में लगी थी कि कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद दिल्ली को पूर्ण राज्य देने की मांग शुरू हो गई। योन तो अरविंद केजरीवाल से पहले अटल बिहाती वाजपेयी के सरकार के समय18 अगस्त 2003 को गृह मंत्री रहते हुए लाल कृष्ण आडवानी ने संसद में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने का प्रस्ताव रखा था! वो प्रस्ताव संसद की कमिटी को दिया भी गया, जिसके चेयरमैन कांग्रेस पार्टी के नेता प्रणव मुखर्जी थे जो अभी इसी 7 जून को संघ के सम्मेलन में भाषण देने गए थे। उस समय प्रणव मुखर्जी ने भी माना था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा मिलना चाहिए! खैर अब दिल्ली में सरकार कांग्रेस-भाजपा की नही आम आदमी पार्टी की थी और पूर्ण राज्य के मुद्दों दोनों मुख्य पार्टियों के राग कुछ और गीत गा रहे थे।
उस समय भी भाजपा खेमे से भाजपा नेताओ जैसे मदन लाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा, विजय मल्होत्रा और डाक्टर हर्षवर्धन द्वारा समय-समय पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की वकालत की जाती रही है! विजय गोयल भी जब दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने भी यही सब कहा था
भाजपा नेताओं की टोली 15 साल से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते हुए कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी,
दिल्ली की तत्काल मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने विधान सभा में दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे का प्रस्ताव रखा था! 2015 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की बात कही थी और अब अरविंद केजरीवाल इसके लिए धरना पर बैठे हैं और उस वक़्त कोई धरना पर नही बैठा था। देखते है अब आगे क्या होता है....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें