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शनिवार, 16 जून 2018

दिल्लीनामा-1

वक़्त के साथ यमुना का पानी बहता गया...  पर नही बदली यमुना दिनों-दिन सूखती जा रही थी. और मटमैला और कालापन. यमुना की पहचान हो गई थी. सामने चबूतरे पर बैठा मै जब देखता हूँ यमुना को तुम्हारी याद में, तो यही लगता है की यमुना के पानी में अब भी कोई व्यथा-कथा शेष है. पता नही क्यों...जब भी यहाँ आता हूँ तो यमुना की तरह तुम्हारी याद पसरने लगती है अपने ही फैलाव में और तय करने लगती  है कोई रास्ता, शायद यमुना की तरह तुम्हारी याद को भी किसी दरिया का इंतजार हो.......दिप्रेक 

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