ढेर सारी ट्रेनों की आवाजाही के बीच भी
वह खड़ा रहता है
और उसकी जड़ो को नही काट पाता
रेलगाड़ी का कोई पहिया
जैसे उसकी जड़े गहरे धंसी हो कही पाताल में
जो रोज ला देती है अँधेरा इस पृथ्वी पर
बहुत सारे उब के बाद भी
अपने इंतजार को वह टिकाये रखता है
उसकी पतियाँ बातें करती है चंद्रमा..तारे..नक्षत्रो से
और नीचे जड़ो तले कोई मजदूर
अनेक नाउम्मीदी के बाद भी सुखा रहा होता है
अपने उम्मीद का पसीना
बढ़ा रहा होता है कही धरती पर पानी का स्रोत
और छलक कर गिरने लगती है पतियों की हरियाली
प्लेटफोर्म की दुधियाँ रौशनी में नहाकर
तब अचानक कोई यात्री
ट्रेन छूटने की उदासी और इंतजार की उम्मीद के बीच से निकलकर
थाम लेता है उम्मीद का दामन
और सुबह चार बजकर तीस मिनट पर जानेवाली मालगाड़ी
(जो रोजाना पक्शिम से पूरब की ओर जाती है )
के साथ ही, वह झूम उठता है
जैसे अभी-अभी ख़त्म हुआ हो वर्षो का कोई इंतजार ...
दिल्ली हादसों का नही इतिहास का शहर हैं...और यहाँ इतिहास किसी सल्तनत का नही शहर का हैं और शहर में कैद मुहब्बतों का है. हां, अपने पीछे छुट गए शहर के झरोंखों में झांकता हूँ तो तुम यादों की पोटली बन जाती हैं जिसे तुमने 'क्यूं' और 'क्या' के गिरह में बाँध रखा है.
Popular Posts
-
अब जबकि हम सबसे नजदीक है तब,सबसे अधिक दुरी है हमारे बीच ठीक वैसे ही ,जैसे एक गर्म चाय की प्याली और होंठो के बीच हजारों मील की होती है
-
टप-टप ....... बारिश की बूंदों ने भिंगो दिया और सज गयी महफ़िल आँखों के आगे जब उतर आई थी बुँदे एक अनजान शहर से , गिरती रही गाते हुए राग-मल्हार...
-
इन आँखों में कत्लेआम मचा है यहां कौन दागी-बदनाम बैठा है.
-
चाँद का तिरछापन खटकता नहीं है अब बेध जाता है कही गहरा ... ...........कैसे स्थिर नहीं रख पाता चाँद अपनी गोलाई ...? और तुम चुपचाप रख देती...
-
दिल्ली के ऊपर जिसने भी राज किया वह इतिहास का हिस्सा होते गए। भाजपा के विजयरथ को आश्चर्यजनक ढंग से अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में रोक ...
-
हमसब राजा थे अपने-अपने हिस्से के अपने दिनों में, तब बिखरा रहता था उत्साह हर तरफ,और बचा रह जाता था जोश अंतिम थकान के बाद भी, उस वक़्त खिड़किया...
-
ऐसा क्या था ? तुम्हारी आवाज में ... वह खींचता चला गया हवा में फेंका नहीं था ... तुमने अपने घर का पता .... वह सबसे पूंछत...
-
हमसब राजा थे अपने-अपने हिस्से के अपने दिनों में जब हर तरफ बिखरा रहता था उत्साह और अंतिम थकान के बाद भी बचा रह जाता था जोश जिद ...
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011
वह पेड़
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें