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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

हाँ अन्ना .....

हाँ अन्ना ,हो सके तो माफ़ करना
बहुत सारी उम्मीदों के बाद भी
हम नही तय कर सके जनांदोलन के बवंडर मे,
आप आंधी है या गाँधी?

हाँ, हम दृष्टिदोष से पीड़ित है
एक मोटी परत चढ़ गयी है आँखों पर
दिमाग में हमेशा घुमड़ते रहते है शक-व-संदेह के बादल
विश्वाश का क्या कहे वह कब का
रण छोड़ चूका है जन-आस के ही आगे
और लड़ने का जोश तो कैद हो गया है ''मौलिक अधिकारों'' में
भीड़ की शक्ल में हर इंसान अब, शकुनी सरीखा दिखता है
चूँकि सबके अपने-अपने कौरव और पांडव है
और पाल रखी है चाहत सबने पैगम्बर बनने की
और बहुत तो अमादा है इस बात पर की यही 'रामराज्य' होगा
और जो बच जाते है दो घटा दो के बाद शुन्य की तरह वह जन है ही कहा
जाहिर है एक बड़ा प्रश्न शुन्य की तरह गोल ही पड़ा है सदियों से
सबसे बड़े भ्रस्टाचार के रूप में
जिसकी हर लड़ाई ईमानदार महाभारत में
"अंगड़ाई का नक्शा बन-बनकर" खो देती है अपना वजूद भूख के आगे

हाँ अन्ना तुम्हारे समर्थन की बयार में
हमने देखे है दो तरह के लोग
एक वह जो खाए-पिए-अघाए है हमारी तरह
जिनकी पहचान ही आन्दोलन की आवाज है
और दूसरे वे जो पँक्ति में खड़े है सबसे पीछे
थोड़े सख्त और गुमसुम अपने मटमैले रंग में
जिन्होंने ठान लिया है दुनिया को मुक्त करना है कचरे के ढेर से
और चला रखा है आन्दोलन जो टंगा हुआ है पीठ पर बैताल की तरह
इस उदारवादी दुनिया में रोज कम होता जाता है उनके हिस्से का एक निवाला
हाँ अन्ना इस भारत में तुम्हारी लड़ाई भ्रस्टाचार से है सुविधाओ के भविष्य के लिये
और इस भारत में एक लड़ाई भूख की है वर्तमान से

हाँ अन्ना अब तुम कह सकते हो इस ग्लोबल वार्मिंग के दौर में
जब शुद्धता के जमने का समय है
तब क्यूँ डाल रहे हो जड़ों में मठा
और क्यों पैदा कर रहे हो वातारण में खटास

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