चलते-चलते एक रात
जब चली जाएँगी चीटियाँ पृथ्वी से
तब ख़त्म होने लगेगी मिठास चीनी से
धीरे-धीरे
बढ़ता जायेगा बोझ छोटे-छोटे कणों से
पृथ्वी का
लोंग भूलने लगेंगे सउर मिलने का
आपस में
सुनसान पड़े घर में छाती जाएगी वीरानी
और वह कहानीकार ढूंढेगा कोई पात्र
जो नाको चने चबवा सके हाथी को
फिर
वर्तमान सभ्यता की बहसों में गूंजेगा यह सवाल
अब कौन करेगा पृथ्वी की पहरेदारी
दिन-रात चीटियों की तरह.
दिल्ली हादसों का नही इतिहास का शहर हैं...और यहाँ इतिहास किसी सल्तनत का नही शहर का हैं और शहर में कैद मुहब्बतों का है. हां, अपने पीछे छुट गए शहर के झरोंखों में झांकता हूँ तो तुम यादों की पोटली बन जाती हैं जिसे तुमने 'क्यूं' और 'क्या' के गिरह में बाँध रखा है.
Popular Posts
-
अब जबकि हम सबसे नजदीक है तब,सबसे अधिक दुरी है हमारे बीच ठीक वैसे ही ,जैसे एक गर्म चाय की प्याली और होंठो के बीच हजारों मील की होती है
-
टप-टप ....... बारिश की बूंदों ने भिंगो दिया और सज गयी महफ़िल आँखों के आगे जब उतर आई थी बुँदे एक अनजान शहर से , गिरती रही गाते हुए राग-मल्हार...
-
इन आँखों में कत्लेआम मचा है यहां कौन दागी-बदनाम बैठा है.
-
चाँद का तिरछापन खटकता नहीं है अब बेध जाता है कही गहरा ... ...........कैसे स्थिर नहीं रख पाता चाँद अपनी गोलाई ...? और तुम चुपचाप रख देती...
-
दिल्ली के ऊपर जिसने भी राज किया वह इतिहास का हिस्सा होते गए। भाजपा के विजयरथ को आश्चर्यजनक ढंग से अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में रोक ...
-
हमसब राजा थे अपने-अपने हिस्से के अपने दिनों में, तब बिखरा रहता था उत्साह हर तरफ,और बचा रह जाता था जोश अंतिम थकान के बाद भी, उस वक़्त खिड़किया...
-
ऐसा क्या था ? तुम्हारी आवाज में ... वह खींचता चला गया हवा में फेंका नहीं था ... तुमने अपने घर का पता .... वह सबसे पूंछत...
-
हमसब राजा थे अपने-अपने हिस्से के अपने दिनों में जब हर तरफ बिखरा रहता था उत्साह और अंतिम थकान के बाद भी बचा रह जाता था जोश जिद ...
शनिवार, 11 जून 2011
सोमवार, 6 जून 2011
कलकत्ते वाली गाड़ी
कलकत्ते वाली गाड़ी
बैठा लाती सूरज को
डेली
टांग जाती आसमां में
सुबह-सुबह
सरपट
पहली किरण की भांति
चली जाती बनारस
वही होता हाल-चाल
उलझते
सुलझते
सुलगते
दुनिया भर की बातो पर
फिर
चमकीली रेत को लगा माथे
कलकत्ते वाली गाड़ी
चल देती धीरे-धीरे
पैठ लेता सूरज भी
बगैर आवाज किये पानी की तरह
साथ-साथ
और जाते-जाते
ले जाती
एक हुगली
एक गंगा
एक भरा-पूरा दिन
कलकत्ते वाली गाड़ी
बैठा लाती सूरज को
डेली
टांग जाती आसमां में
सुबह-सुबह
सरपट
पहली किरण की भांति
चली जाती बनारस
वही होता हाल-चाल
उलझते
सुलझते
सुलगते
दुनिया भर की बातो पर
फिर
चमकीली रेत को लगा माथे
कलकत्ते वाली गाड़ी
चल देती धीरे-धीरे
पैठ लेता सूरज भी
बगैर आवाज किये पानी की तरह
साथ-साथ
और जाते-जाते
ले जाती
एक हुगली
एक गंगा
एक भरा-पूरा दिन
कलकत्ते वाली गाड़ी
आसमां में कोई पेड़ नहीं उगता
आसमां में
कोई पेड़ नही उगता
वरना
वहां भी होती एक चिड़ियाँ
दिनों बाद गिरी पत्तियों से
गढ़ती घोसला
दूर से आता कोई नागरिक
बना लेता फैली जड़ो को
अपना बिछावन
वहां भी होता एक बसंत
और कोयल की कुक
भले ही न होता
कोई फुल या फल कभी
अदद एक पेड़ होता
लेकिन नही होता
कुछ भी
उलट इस पृथ्वी की उर्वरता के
की
आसमां में एक पेड़ होता ?
कोई पेड़ नही उगता
वरना
वहां भी होती एक चिड़ियाँ
दिनों बाद गिरी पत्तियों से
गढ़ती घोसला
दूर से आता कोई नागरिक
बना लेता फैली जड़ो को
अपना बिछावन
वहां भी होता एक बसंत
और कोयल की कुक
भले ही न होता
कोई फुल या फल कभी
अदद एक पेड़ होता
लेकिन नही होता
कुछ भी
उलट इस पृथ्वी की उर्वरता के
की
आसमां में एक पेड़ होता ?
रेलगाड़ी
जब भी आना होगा तुम्हे
बेहिचक आ जाना
बिना बताये
जैसे आ जाती है रेलगाड़ी
और छोड़ जाती है
कुछ निशान
पीछे पटरियां
रास्ता रेलगाड़ी का
बेहिचक आ जाना
बिना बताये
जैसे आ जाती है रेलगाड़ी
और छोड़ जाती है
कुछ निशान
पीछे पटरियां
रास्ता रेलगाड़ी का
सुबह-सुबह
माँ
हा माँ
चढ़ा क्या देती है ...
एक लोट्की जल सूर्य को
बस उतने में ही
मांग लेती है
सूर्य की लालिमा
लोट्की में सबके लिये
और प्रार्थना में
बाँट देती है रोजाना
अपनी उम्र के हिस्से
उनको ..इनको ...सबको ...
जब नही बचता कुछ
पास अपने.....
तब,आते ही भर लेती जल
लोट्की में
रख देती वही.... सामने
जोड़कर हाथ
चल देती पांच भवंर
पृथ्वी के
सुबह-सुबह
हा माँ
चढ़ा क्या देती है ...
एक लोट्की जल सूर्य को
बस उतने में ही
मांग लेती है
सूर्य की लालिमा
लोट्की में सबके लिये
और प्रार्थना में
बाँट देती है रोजाना
अपनी उम्र के हिस्से
उनको ..इनको ...सबको ...
जब नही बचता कुछ
पास अपने.....
तब,आते ही भर लेती जल
लोट्की में
रख देती वही.... सामने
जोड़कर हाथ
चल देती पांच भवंर
पृथ्वी के
सुबह-सुबह
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)