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सोमवार, 6 जून 2011

कलकत्ते वाली गाड़ी

कलकत्ते वाली गाड़ी
बैठा लाती सूरज को
डेली
टांग जाती आसमां में
सुबह-सुबह

सरपट
पहली किरण की भांति
चली जाती बनारस
वही होता हाल-चाल
उलझते
सुलझते
सुलगते
दुनिया भर की बातो पर

फिर
चमकीली रेत को लगा माथे
कलकत्ते वाली गाड़ी
चल देती धीरे-धीरे
पैठ लेता सूरज भी
बगैर आवाज किये पानी की तरह
साथ-साथ
और जाते-जाते
ले जाती
एक हुगली
एक गंगा
एक भरा-पूरा दिन
कलकत्ते वाली गाड़ी

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