Popular Posts

शनिवार, 11 जून 2011

चीटियाँ

चलते-चलते एक रात
जब चली जाएँगी चीटियाँ पृथ्वी से
तब ख़त्म होने लगेगी मिठास चीनी से
धीरे-धीरे
बढ़ता जायेगा बोझ छोटे-छोटे कणों से
पृथ्वी का
लोंग भूलने लगेंगे सउर मिलने का
आपस में
सुनसान पड़े घर में छाती जाएगी वीरानी
और वह कहानीकार ढूंढेगा कोई पात्र
जो नाको चने चबवा सके हाथी को
फिर
वर्तमान सभ्यता की बहसों में गूंजेगा यह सवाल
अब कौन करेगा पृथ्वी की पहरेदारी
दिन-रात चीटियों की तरह.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें